नई दिल्ली:
“पिछली बार घर को दोबारा बनाने में हमें दो महीने की सैलरी लग गई थी। और अब फिर से वहीं खड़े हैं जहाँ से शुरू किया था,” उदास मन से कहती हैं 25 वर्षीय पुष्पा, जो अपनी तीन साल की बच्ची को गोद में लिए राहत शिविर पहुँचीं। यमुना का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर जाते ही मंगलवार को कई परिवार जैसे-तैसे अपने सामान समेटकर कैंपों में पहुँच गए।
रोज़मर्रा की जंग
अस्थायी टेंटों में बच्चों को घर से लाए सामान की रखवाली करनी पड़ रही है। 15 साल की गीता ने स्कूल छोड़कर अपना दिन परिवार के बर्तन और कपड़ों की देखरेख में लगाया क्योंकि उसके माता-पिता, जो दिहाड़ी मजदूर हैं, छुट्टी नहीं ले सकते थे।
विजय घाट, पुराने रेलवे पुल और अन्य निचले इलाकों से विस्थापित परिवारों की अब जद्दोजहद भोजन, पानी और शरण के लिए है। गीता कॉलोनी में करीब 300 लोग ठहरे हुए हैं। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और डिविजनल कमिश्नर नीरज सेमवाल ने वहाँ की व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया। उन्होंने दावा किया कि सभी इंतज़ाम किए गए हैं।
लेकिन शिकायतें भी कम नहीं
कई लोगों का कहना है कि खाने का वितरण ठीक से नहीं हो रहा। यमुना बाज़ार कैंप में परिवारों को चावल-दाल मिली, लेकिन गीता कॉलोनी में कुछ ने आरोप लगाया कि केवल बच्चों को ही टिफिन दिया गया।
शिविरों में जगह भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। मंगलवार सुबह गीता कॉलोनी में केवल 21 टेंट थे, बाद में 15 और लगाए गए। कई परिवारों को मजबूरी में दूसरों के साथ टेंट साझा करना पड़ा। कोई अपने सामान को बचाने के लिए तिरपाल लगाकर खुद शरण बना रहा है।
सीमित सुविधाएँ
गीता कॉलोनी फ्लाईओवर पर सिर्फ एक DJB का पानी का टैंकर है, वह भी जरूरतों से काफी कम है। हैंडपंप भी खराब हो चुका है। मेडिकल स्टाफ मौजूद है लेकिन दवाइयाँ सीमित हैं। स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि अभी सिर्फ प्राथमिक इलाज दिया जा रहा है, हालात बिगड़ने पर मेडिकल किट और जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे।
संक्रमण का खतरा
यमुना बाज़ार कैंप में टेंट खुले नालों के पास लगाए गए हैं। स्थानीय RWA सचिव गोपाल झा ने चेतावनी दी कि ऐसे में बीमारियों का खतरा बहुत बढ़ गया है और शिविरों में पर्याप्त मेडिकल स्टाफ नहीं है।
बुज़ुर्ग कांति देवी, किशोरी शीटल और कई परिवारों ने बताया कि टेंटों की कमी से उन्हें हर वक्त डर है कि कहीं उनकी थोड़ी सी जगह भी कोई और न हथिया ले।
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SRC-THE HINDU